मैं और तेरे वादे

तेरे वादों से होती है मुझे नफरत कुछ इस तरह
बदले की आग में जलता हो दुश्मन जिस तरह
तेरे इक मीठी बातों से हो जाती है हर सिकवा दूर
बेक़रार इश्क में हर गुनाह भूल जाता है आशिक जिस तरह
तुम कहो तो दिन तुम कहो तो रात कहो तो सुबहो-शाम
और मनाना हर बात को ऐसे होता है इतिहास में जिस तरह
तेरे हर सितम मंज़ूर ग़र तू हो के रहे हमारी
वरना मतलबी हूँ मैं भी बिलकुल तुम्हारी तरह
पहली दफ़ा मिलने की सुध में बंधन सारे तोड़ दिए
दूसरी दफ़ा दो दिल मिलने की रीत सारे तोड़ दिए
तीसरी दफा जब चले गए तुम अनजान राही की तरह
जीवन वीरानी हो गई है सुनसान झाडी की तरह
गर मैं न बदला तू न बदली एहसास कैसे बदल गए
आँखे हैं वही रातें हैं वही ख्वाब कैसे बदल गए
रीत सारे गर तोड़ सकूँ मैं वादा-ए-सियासत की तरह
वापस लौटकर तू आ जाये मौसम औ सावन की तरह
    Written By:-
Chandan Kumar Gupta

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