मरा मन

घाव का पता नहीं पर दर्द बेशुमार है
जब भी खुशियों को ढूंढू रोना आ जाता है
जज़्बात तो छुपाये ही थे बचपन से
खामोशी भी आ गयी थी लड़कपन से
नई ज़िन्दगी जो मिली आश बंध गया था
दफन किये अहसास सारा उफन पड़ा था
पर साज़िशें रुलाने की कर रहे थे अपने ही
जिम्मेदारी के नाम पे कैद कर दिए सपने भी
कैद हुए मन से मुस्कुराने को कहते हैं
बांध कर पर वो उड़ जाने को कहते हैं
रकीबों के झूठी शान में सुथरा हो रहा हूँ
पर मर चुके मन के लाश को ढो रहा हूँ

~चंदन Chandan