खामोशी

बहुत दर्द हो तो खामोश हो जाता हुँ
खामोश होकर अपने ज़ख्म छुपाता हुँ
पास होकर भी मुझसे दूर है वो
हर दिन उनसे थोड़ी दूरियां निभाता हुँ
उम्मीद ज़माने से टूट चुकी थी कबकी
रिश्ते भी आज़माये नीयत देखी सबकी
बस उनसे थोड़ी उम्मीद कर बैठा मैं
जो दर्द था उसे दवा समझ बैठा मैं
कोशिश करता हुँ गमो में दब न जाऊं
अश्कों की धार में कमजोर पड़ न जाऊं
अश्रूओं को फूटना था सिर्फ उनके सामने
ज़माने से भी हारकर बेवजह टूट न जाऊं
युहीं अपंग रिश्ते को घसीटूँ कबतक
साथ होकर भी तन्हाई सहुँ कबतक
आस अब खुशियों का दिखता नही मुझे
अपने पराये में भेद सूझता नही मुझे
जीवन से बंधा हूँ या इस तन्हाई से
एक मिलता नही एक छूटता नही
खामोशी ही बरकरार रखूं कबतक
ज़िंदगी ही है मौत तो जियूँ कबतक
~ चन्दन