ख्वाहिश तेरे काजल की

तेरे काजल की ख्वाहिश थी, वफ़ा को नज़र न लग सके
उसने काजल मिटा डाला कि हमारी असर न हो सके
सिलसिला ख्वाहिशों का पनपता रहा यूँ बेसबब
उसने नींद से जगा डाला कि यूँ बसर न हो सके
तुझसे गुफ्तगू की चर्चा फैलती रही सरेआम
उसने लफ्जों-जरिया मिटा डाला कि यूँ मशहूर न हो सके
खुद से हारने का किस्सा सुनाऊं भी तो किसे मैं
खुद को मशगुल जताते हैं सब कि हमसे मशरूफ हो सके
जज़्बात छुपाने की कला जो कभी सीखी थी तुझसे
हमने आजमाइश कर डाला कि तू रकीब तो दिख सके
पर अल्फाज़ तेरे "चन्दन" दगा न कर सका
वो गीत बन बिखर गए कि यूँ बयां तो हो सके
तेरे काजल की ख्वाहिश थी, वफ़ा को नज़र न लग सके
उसने काजल मिटा डाला कि हमारी असर न हो सके
Written By:-
Chandan Kumar Gupta

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