क्यों नहीं

ख्वाब कभी हकीकत बन जाती क्यों नहीं
गर है वो हमारी तो जताती क्यों नहीं
दूरियां बढाकर तडपाती है खुद को
मिलना ही है गर मुझसे तो पास आती क्यों नहीं
सपनो में रोज मेरी सहजादी बनकर आती है
हकीकत में पर्दा कभी उठती क्यों नहीं
कहते तो हैं की वो सिर्फ हमारे हैं
फिर अपनों की तरह वो मुझे सताती क्यों नहीं
मेरी हर इक खबर रहती है उनके पास
फिर अपनी खबर मुझे वो बताती क्यों नहीं
तडपाती है मुझे वो मुझे अपनी दुश्मन की तरह
गर इरादा है नेक तो खुलेआम बोल पाती क्यों नहीं
ख्वाब कभी हकीकत बन जाती क्यों नहीं
गर है वो हमारी तो जताती क्यों नही
          Written By:-
       Chandan Kumar Gupta

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