डर लगता है

दरवाज़ा खुला है इन्तजार मे उनके
डर लगता है दस्तक दरवाज़े पे किसी और की न हो
तसस्वुर मे खोया रहता हूँ मै  उनके
डर लगता है दस्तक दिल पे उनकी किसी और की न हो
दौर लगाता हूँ वक्त के साथ हर कदम पे
डर लगता है साथ उनका न छुट जाए वक्त की दौर मे
उँचा बहुत उँचा जाने के सपने देखता हूँ
डर लगता है कहीं फिसल न जाउँ इस चाहत मे
शौक बदलने का  सपने को हकीकत मे है पुराना मगर
डर लगता है चंद खुशनुमा हकीकत सपने न बन जाए
सिकवे उन्हे भी है गिला हमे भी है बेशक मगर
डर लगता  है दुरियाँ न जीत जाये जिद्द की जंग मे
                      Written by:-
              Chandan Kumar Gupta

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