चिंगारी इक पल का जलाकर चुप क्यों कोई हो जाता है
लौ किसी दीपक की जलने तक ठहर वो क्यों नहीं पाता है
क्या झूठ इतना ताक़तवर है की वो अंत तक डटा रह जाता है
या सच इतना कड़वा है की वो स्थिर नहीं रह पाता है
उठती है जब कोई आग मन में शोलों सा भड़क जाता है
शबनम सा कोई आवे तो मन सुलगा उसे क्यों नहीं पाता है
इक शख्स किसी दीपक को बार-बार सुलगाता है
कुछ वक़्त की आंधी बुझाता है कुछ जलता रह जाता है
आपने भी इक लौ को बड़ी सिद्दत से छेड़ा है
सेहर हुई गर्मजोशी से अब धुंधला नजर आता है
इस सच के प्रज्वलित होने तक क्या आप टिक पाएंगे
इक आन्दोलन की नीव रख इतिहास में नाम रचाएंगे
या मन की भड़ास निकालकर संतुष्टि पा जायेंगे
मोर्चा संभाल कर रण का आप भी पीठ दिखायेंगे
Written By:-
Chandan Kumar Gupta
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