दूर थे जब तुम, मेरे सबसे करीब थे
जज्बात तेरे सारे, मेरे भी अज़ीज़ थे
मिल न सकी थी नज़रे कभी हमारी
पर नज़्र में सिर्फ तुम ही शरीक थे
जज्बात तेरे सारे, मेरे भी अज़ीज़ थे
मिल न सकी थी नज़रे कभी हमारी
पर नज़्र में सिर्फ तुम ही शरीक थे
सिमटी थी दुनिया एक दूजे की हद तक
ख्वाबों में जीते थे, न कोई हबीब थे
याद आते हैं अब भी वो बीते पल
कि दूर होकर भी हम कितने करीब थे
ख्वाबों में जीते थे, न कोई हबीब थे
याद आते हैं अब भी वो बीते पल
कि दूर होकर भी हम कितने करीब थे
समझ न सका जो आगाज़ थी तन्हाई की
ख़ामोशी से पहले शोर थी शहनाई की
रश्में जुदाई ही निभाई जाये ये जरुरी तो नहीं
जहाँ गोत्र आबरू बने, मिलन कहाँ नसीब थे
ख़ामोशी से पहले शोर थी शहनाई की
रश्में जुदाई ही निभाई जाये ये जरुरी तो नहीं
जहाँ गोत्र आबरू बने, मिलन कहाँ नसीब थे
रुतवा अपने अपने है सबके उपनामो में
समाज के इस बंधन से हम कहाँ अछूत थे
बस इतनी इल्तज़ा है दिल में रहे इक दूजे के
भूले कभी न वजह, कि हम क्यों बदनसीब थे
समाज के इस बंधन से हम कहाँ अछूत थे
बस इतनी इल्तज़ा है दिल में रहे इक दूजे के
भूले कभी न वजह, कि हम क्यों बदनसीब थे
सप्रेम लेखन: चन्दन Chandan چاندن
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