तेरी बेरुखी को मैं क्या समझूँ
महज़ संयोग या साज़िश समझूँ
यकीं नहीं आता अपनी ही किस्मत पे
किस्मत कहूँ या तेरा एहसां समझूँ
साज़िश खुद ही रचते हो
फिर रास्ता तुम ही गढ़ते हो
इत्तेफाक के इस पुलिंदे को
इश्क का कौन कायदा समझूँ
तेरी बेरुखी को मैं क्या समझूँ
एहसास इश्क़ का ही था
सहनशीलता सीखी है मैंने
महज़ संयोग या साज़िश समझूँ
यकीं नहीं आता अपनी ही किस्मत पे
किस्मत कहूँ या तेरा एहसां समझूँ
साज़िश खुद ही रचते हो
फिर रास्ता तुम ही गढ़ते हो
इत्तेफाक के इस पुलिंदे को
इश्क का कौन कायदा समझूँ
तेरी बेरुखी को मैं क्या समझूँ
एहसास इश्क़ का ही था
कि चाँद में चेहरा दिखता था
वरना ब्रह्माण्ड के ग्रह उपग्रह में
बिम्ब प्रतिबिम्ब मैं क्या समझूँ
तेरी बेरुखी को मैं क्या समझूँ
सहनशीलता सीखी है मैंने
अपने घर के सरकारों से
मतलब की है दुनिया सारी
रिश्ते नाते मैं क्या समझूँ
तेरी बेरुखी को मैं क्या समझूँ
सप्रेम लेखन: चन्दन Chandan چاندن
No comments:
Post a Comment