रिश्तों में अवसर का स्थान नहीं होता

ना जाने कैसे लोग रंग बदलते रहते हैं
मैं तो महज कोशिश करके भी शर्मा जाता हूँ
किसी का दिल दुखाकर भी वो हँसते हैं बेहिसाब
मैं दिल्लगी से पहलेे भी कहता हूँ माफ़ी जनाब
यूँ पहचान बदलने की आदत इंसान की
उफ़ देते हैं हवाला अधूरे अरमान की
पर इंसान हकीकत से अनजान नहीं होता
रिश्तों में अवसर का स्थान नहीं होता
जिस रंग में रंगते हैं लोग अवसर मानकर
फीका न होने की उस रंग का प्रमाण नहीं होता
जिस रंग को छोड़ देते हैं फीका जानकर
उस रंग के भविष्य का ज्ञान नहीं होता
अवसर मान अपनाते हैं जिसे
अवसर उसे भी मिल सकता है
फीका जान ठुकराते हैं जिसे
किस्मत उसका भी बदल सकता है
पर साथ निभाये अवसर मेज्मान नहीं होता
गस्त खाने का फिर से किसी का अरमान नहीं होता
Written By:
Chandan


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