मन की भावना कहीं विलीन क्यों होती है
किसी की याद में दिल ग़मगीन क्यों होती है
हर सपने तो किसी के पुरे नहीं होते,
तो फिर ये मन सपनों में शरीक क्यों होती है
मन की भावना कहीं विलीन क्यों होती है
किसी की याद में दिल ग़मगीन क्यों होती है.
देखा है चाँद को मैंने नज़रे फेरते हुए,
देखे कई वादों से वादाफ़रोख्त को मुकरते हुए,
फिर भी चाँद से दीदार-ए-जुर्रत क्यों होती है
इन्सां को कसम-ओ-वादों पे यकीं क्यों होती है
मन की भावना कहीं विलीन क्यों होती है
किसी की याद में दिल ग़मगीन क्यों होती है
Written By-
CHANDAN KUMAR GUPTA
किसी की याद में दिल ग़मगीन क्यों होती है
हर सपने तो किसी के पुरे नहीं होते,
तो फिर ये मन सपनों में शरीक क्यों होती है
मन की भावना कहीं विलीन क्यों होती है
किसी की याद में दिल ग़मगीन क्यों होती है.
देखा है चाँद को मैंने नज़रे फेरते हुए,
देखे कई वादों से वादाफ़रोख्त को मुकरते हुए,
फिर भी चाँद से दीदार-ए-जुर्रत क्यों होती है
इन्सां को कसम-ओ-वादों पे यकीं क्यों होती है
मन की भावना कहीं विलीन क्यों होती है
किसी की याद में दिल ग़मगीन क्यों होती है
Written By-
CHANDAN KUMAR GUPTA
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