यूहीं

सोचता हूँ यूहीं कभी मैं,
है मेरी गलती या हूँ मजबूर मैं,
अलावा अपने स्वार्थ के क्यों हूँ बेक़रार मै,
है ये मेरी बड़प्पन या है बेवकूफी मेरी
कि सह रहा हूँ हर सितम बिन सवाल मै,
आश है नजराना का बदले अपने त्याग के,
मिलेगी हर चाहत या हो जाऊंगा कसूरवार मैं,
जद्दो-जिहदके इस जीवन में उम्मीद है इक लौ की,
मिले न ग़र वो हमे मर जाऊंगा बेनूर मै,
सोचता हूँ युहीं कभी मै...
         Written By:-
Chandan Kumar Gupta