समय था वो भी समय है ये भी



इक शब्द आहट का सुनकर चहकना समय था वो भी
आज परिचय के बाद भी पूछना 'आप कौन?' समय है ये भी
कभी सपनो की दुनिया सजाते न थकना समय था वो भी
आज हकीकत सह-सहकर थकना समय है ये भी
सोते-जागते यूँ बातों का ताना-बाना बुनना समय था वो भी
आज साधन-संपन्न होकर भी बातों को तरस जाना समय है ये भी
रूठना-मानना, गाना-गुनगुनाना समय था वो भी
न है कोई मौन-व्रत फिर भी बोल ना पाना समय है ये भी
कवो भीभी बारिश में भी नक़ाब हटाना समय था
आज गर्मियों में भी परदे का गिराना समय है ये भी
बिन सवाल किये विश्वाश करना समय था वो भी
आज हर जवाब में साजिश का शक होना समय है ये भी
इक शब्द आहट का सुनकर चहकना समय था वो भी
आज परिचय के बाद भी पूछना 'आप कौन?' समय है ये भी
                                     Written By:-

                            Chandan Kumar Gupta














                                                           


विजातीय निकाह



तेरे चेहरे की नूर आती है हरपल मेरे ख्वाबों में
कि नकाब हटा दो चेहरे से अब और इंतज़ार नहीं होता
मिलकर एक होनेवाले क्या जाने आह जुदाई का
पढ़ लो मुझे जब इक पल तेरा दीदार नहीं होता
तोड़ दो सारे बंधन आ जाओ मेरी बाँहों में
कि थक चूका हूँ सुनकर विजातीय निकाह नहीं होता
चाँद और सूरज बरक़रार रहे आसमां कि प्रांगन में
लाखों तारे टूट गिरे आसमां को कोई परवाह नहीं होता
दे न दे ज़माना साथ हम मजबूत करेंगे इस बंधन को
इन्सां का भले हो गुनेहगार दीवाना खुदा का नहीं होता
                            Written By:-
                    Chandan Kumar Gupta