माना कि नज़रें न कभी मिलेगी हमारी
पर क्या खुद से नज़रे मिला पाओगे तुम
शीशे में जमाल निहारते अपनी
मेरी छुअन नज़र अंदाज़ कर पाओगे तुम
बदलते रिश्ते तुम्हे खुश करले कितना भी
पर बीते लम्हे कैसे भुला पाओगे तुम
शरारत भरी निगाह से यूँ न देखो मुझे
क्षण-पल ये कहते खुद को पाओगे तुम
गुमराह था मैं यकीं तो अब भी नहीं होता
गुनेहगार कातिल को कैसे ठहराओगे तुम
सुहाना हो तेरा शौक-ए-शफर कितना भी
वो दिलचस्प एहसास कैसे भुला पाओगे तुम
जब भी आएगी शब् चांदनी समेटे बाहों में
मेरे नज़्म युहीं गुनगुनाओगे तुम
जो अलफ़ाज़ रिसा आगोस में तेरे "चन्दन"
वो लफ्ज़-ए-जज्बात कैसे भुला पाओगे तुम
- Chandan Kumar Gupta
पर क्या खुद से नज़रे मिला पाओगे तुम
शीशे में जमाल निहारते अपनी
मेरी छुअन नज़र अंदाज़ कर पाओगे तुम
बदलते रिश्ते तुम्हे खुश करले कितना भी
पर बीते लम्हे कैसे भुला पाओगे तुम
शरारत भरी निगाह से यूँ न देखो मुझे
क्षण-पल ये कहते खुद को पाओगे तुम
गुमराह था मैं यकीं तो अब भी नहीं होता
गुनेहगार कातिल को कैसे ठहराओगे तुम
सुहाना हो तेरा शौक-ए-शफर कितना भी
वो दिलचस्प एहसास कैसे भुला पाओगे तुम
जब भी आएगी शब् चांदनी समेटे बाहों में
मेरे नज़्म युहीं गुनगुनाओगे तुम
जो अलफ़ाज़ रिसा आगोस में तेरे "चन्दन"
वो लफ्ज़-ए-जज्बात कैसे भुला पाओगे तुम
- Chandan Kumar Gupta