ज़ख्म हरा कर देती है

भुला के राह-ए-इश्क़ तेरा मान तो रख लूँ
तेरी खामोश सिसक ज़ख्म हरा कर देती है
न देखती मुड़कर मुझे तो बात अलग थी
नजरें मिला के फेर लेना ज़ख्म हरा कर देती है

चिंगारी बुझ गई होती उल्फत-ए- ख्वाब के मेरे
तेरा अरसे पे मिल जाना ज़ख्म हरा कर देती है
नफ़रत ही सही पेश कर दो बेबाकी से
तेरा खामोश रह जाना ज़ख्म हरा कर देती है

झूठ बोलती है परिजन से मुझसे दो बातें करने को
विदाई पे अनछुआ-बोसा ज़ख्म हरा कर देती है
हर सुबह होती है गलतफहमियां जी लूंगा तेरे बिन
रैन ख्वाबों में तेरे जीना ज़ख्म हरा कर देती है

तोड़ भी लेती बंधन इश्क़ के राह नहीं धूमिल होता
इंकार इकरार की दुविधा ज़ख्म हरा कर देती है
किस्मत में हो ग़र आ जाओ बिन आजमाइश के
हर घड़ी हर क्षण तड़पाना ज़ख्म हरा कर देती है

सप्रेम लेखन: चन्दन Chandan چاندن

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